मंगलवार, 19 अगस्त 2008

पुकार

हिमगिरि के ऊंचे शिखरोंसे
सागर की उठती लहरों से
तुम्हे पुकार रहा है कोई

सोए कब से अब जगो मीत
क्या रूदन नहीं सुना अब तक
उठकर धाओ, उठकर जाओ
देखो चीत्कार रहा है कोई .

सहते नित प्रति पदाघात
झेलते कुटिल तंत्र का चक्रवात
हे मौनव्रती-अब तोड़ो मौन
देखो,देखो घिर आए हैं बादल
फिर से अकाल के महाकाल के

जागो सेनानी समरक्षेत्र में
देखो ललकार रहा है कोई
तुम्हें पुकार रहा है कोई ।

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