रविवार, 17 अगस्त 2008

जागीर

तुम चले गए
सब बदल गया है।
बहुत हो गयी फीकी किरने
बड़ी सुनहरी दिखती थीं जो
हरा-भरा मन मुरझाया है

बागो से गाती कोयल भी
लगता जैसे रूदाली है
खिले हुए फूल
लगे मुरझाने
कोपल गायब
बदल गया सब
उलझ गया सब
क्यों आये थे
चले गए क्यों चुपके से तुम

चले गए तो पता चला
कितना खोया
चले गए तो पता चला
तुम क्या थे
चले गए तुम नाम मेरे लिख
पीड़ा की जागीर.

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