रविवार, 17 अगस्त 2008

बदलाव

आकाश,जब रक्तप्लावित होता है,
पक्षियां अपने बसेरे की ओर
कूच करती है
फाइलें चुपचाप
सेफों में सरक जाती हैं।
मेजों पर रखे चश्में
और
कुरसियों पर टगे कोट
'गायब हो जाते है।

मयखाने
'सफेद-काले ठहाको से
मुखर हो जाते है।
मजदूरों की झुग्गियों से
जब धुआं उठने लगता है
शहर की हलचली शाम
हंसी-चीख और पुकार
जब मिश्रित कर देती है।


गांवों में सन्नाटा जब
गहराता है और
सोया हुआ शहर जब
जगने को होता है
मैं तब भी उदास होता हूं
लेकिन मेरी कल और आज की
उदासी में,
एक गहन अंतराल और
'तब्दीली रहती है/जाने क्यों।

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