हमने कितनी बात की है,हम जमाना बदलेंगे
खुद को कितना बदल पाए, आओ सोचें तो सही
हमने हर डगर पर
रोड़े बिखेरे हैं
फूल बोया कभी तो
kaliyan भी तोड़े हैं
मोड़ी धारा कभी तो बाढ़ भी हमने ही लायी
हमने कितने बांध काटे आओ सोचे तो सही
जानकर जुड़ते गए
तोड़ा भी हमने जानकर
मिटना था किसके लिए
मर मिटे ओछी आन पर
आओ कोशिश करें तो
जाये बदल फिर यह जमीं
यह जमीं बदली अगर तो
आसमां बदलेगा ही
हमने बोया kantakon को , जिंदगी की राह पर
पैर में किसके चुभेंगे,आओ सोचें तो सही।
मंगलवार, 19 अगस्त 2008
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