मंगलवार, 19 अगस्त 2008

एक पाती जमनापार से

तुमने/कभी-कभार देखी होगी
चौड़ी छातीवाली कोई नदी
यहां हम हैं िक रोज दोबार
और कभी तो कई-बार
पार कर जाते हैं, 'जमना (यमुना)

वही जमना/जो सदूर यमुनोत्री से
दिल्ली आकर जमना बन जाती है।
वैसे, जैसे अपने गांव का धनई
बन जाता है शहर में धनराज

जमना तो तुमने भी देखी है
कुम्भ के नहावन में
वही नदी, जो गंगा में मिलकर
संगम बनाती है
संगम के नीचे एक और नदी है
(सरस्वती), जो न तुमने देखा न हमने
पर सब कहते है तो होगी कोई नदी
पुराने इलाहाबाद की तरह
जो कभी प्रयाग था

लेकिन दिल्ली की जमना
प्रयाग सी अथाह नदी नहीं है
सोच लो कितनी बड़ी होगी यहां जमना
िक हमारे जैसे छोटे पांव
रोज दिन में दो बार पार कर जाते हैं
हम अकेले नहीं/हजार-लाख लोग
बड़े-बूढ़े सब पार करते हैं, जमना
उस ओर जाते है, जहां संसद है/
बड़ी -बड़ी इमारतें हैं/जिसमें
रखी फाइलें रोटी उगाती हैं
पर हम तैर कर नहीं जाते जमना
तैरने को जमना में धरा भी क्या है
पानी तो यहां लोगों ने सोख लिया है।

बस साल में एक बार गुस्साती है जमना
अपने सरजू ,गोमती, सई और केन ·ी तरह
लेकिन उसका पानी इंडिया गेट तक नहीं आता/
न संसद तक जाता है
वह तो अपनी गोद में बसी
झोपडिय़ों को उजाड़/उन्हें भी
काफी राहत दिला जाती है
और इसी बदौलत/साल भर
आबाद रहते है हजारो लोग

जमनापार २० लाख दुखियारे वोटरों की महाबस्ती है
मैं भी रहता हूं/पर वोटर नहीं हूं
बस दिली तसल्ली को मैं अब
उस हिस्से को भी जमनापार कहने लगा हूं
जहां संसद है/

जमना पार
कुलीन और दुखियारे
दोनों की महाबस्ती है
बड़ी ही होती जा रही है/सुरसा की तरह
यहां भी अब कोई किसी को जानता/पहचानता नहीं
मकान मालिक भी किरायेदार का नाम नही
हर माह उससे मिलनेवाली रकम चीन्हता है।

कागजी शेरों और फाइलों से भरे इस शहर में
हर फाइल को अपनी हैसियत मालूम है
हम सभी किसी न किसी फाइल के हिस्से हैं
बिजली, पानी, राशन या पुलिस की फाइल में
कहीं न कही नत्थी सब हैं।
फाइलें ही फाइलें
पुलिस/फायर ब्रिगड/मोटरें
चौड़ी सड़के और दिन रात दौड़ते
आदमी की भीड़ में तुम भी क्यों
शामिल होना चाहते हो

क्या दिन क्या रात/बस दौड़ता ही रहता है यह शहर
फाइलें तो यहां इतनी है/जिसे ढोते-ढोते
हजारों लोग पेंशन लेने लगें है अब
इतनी फाइले ·िक गांव के गाव दब जायें
दरअसल यहा की फाइलों से गांव दबे भी हैं।
साफपानी और पहचान/यहां खोजते क्यों हो
यहां तो भूख से तड़ता आदमी भी
एन.एस.डी. का कोई भूखा पात्र लगता है।
घायल को लोग मर जाने देते है
कोई किसी का पता नहीं बताता
सबको अपना ठिकाना भी कहां पता
ट्राली में लदे भूसे की तरह
डीटीसी आदमी लादे आती है जमना पार
और वैसे ही जाती है जमना पार से।

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