कितने किले बने-बुर्ज ढ़हे
उजड़ी झोपडिय़ां कितनी ,
मुठभेड़ कितनी हुयी
खालिस निदोर्षो की
इन सब पर बातचीत
करना अपराध है,
होता हो कुछ भी पर देश तो आजाद है।
खादी छलावा बनी
योजनायें राग
जिस बस्ती ने रोटी मांगी
छोड़ दिया नाग
टूटी है काया कितनी
कितने बलात्कार
इन सब पर बातचीत करना अपराध है।
होता हो कुछ भी पर देश तो आजाद है।
सेवा बनी रोजगार
जिस्मों का व्यापार
कितने बेजुबानों की
होती हत्यायें है
आंकडे न मांगिए
उगलियां उठाइए न किसी भी हत्यारे पर
यह सब अपराध है
होता तो कुछ भी पर देश तो आजाद है।
यह कभी न भूलिए, देश तो आजाद है।
रविवार, 17 अगस्त 2008
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