मंगलवार, 19 अगस्त 2008

तैमूर

सुना था बहुत पहले
तैमूर दिल्ली आया था
लेकर सैनिको की विशाल टुकडिय़ां
सरेआम कत्ल,अत्याचार
लूट लिए गए थे असहाय लोग
लगा कर खडग़ों की नोक
और एक बालक की वीरता पर
प्रभावित तैमूर
छोड़ जगहें लूटना शेष
लौट गया था अपने देश

वह वीर बालक तो नहीं रहा
पर तैमूर अपनी विरासत सौंप गया
अगणित तैमूरों को
सुनता हूं,तैमूर ही तैमूर हैं दिल्ली में
शरीफ चोले में,सुंदर लिबास में
आंधी सा आते हैं,तूफान से चले जाते हैं
लूट अपना यह देश
सारे माल विदेशी बैंको में जमा कर आते हैं

स्वस्थ देश का रक्त लिया चूस
कौन था वह श्वान,नहीं हो सकी पहचान
खबर है िक एक सबल स्वान से टक्कर के बाद
भाग गया हार कर वह तैमूर
और वह मांस के लोथडो़ पर भिड़ गया
मांस पिंड साफ क र गया छोड़ अस्थि
अलग देश को लगायी दौड़
बनवाया नया कारखाना
चलाया नूतन उद्योग

अस्थियों पर अब भी चंद स्वान भिड़े हैं
कंकाल अब भी यहां बहुत बिखरे हैं
कुछ दिन बाद
एक और तैमूर आएगा
और वह कंकाल भी बीन ले जाएगा.
नोट-यह पहली रचना है जो 1976 में लिखी गयी थी.

कोई टिप्पणी नहीं: