ताज,मैं भी जानता हूं तुम्हारा राज
तुम्हारे मूक श्वेत प्रस्तरों की आहट
बहुत कुछ बयान कर जाती है खुद
वह प्रेम पुष्प,अकाल में काल कवलित हो
मुरझाया था
ब्रह्म ने अपना बज्र गिराया था.
शाह,जहां में आज भी
तुम्हारे पवित्र प्रेम की यादगार में
विधवा श्वेत प्रस्तर,·कुछ कह रहे हैं
और सदियों से हम उसकी भाषा बूझने की
कोशिश कर रहे हैं
शाह,मृत्यु निराकार,दिया तुमने रूप साकार
यमुना की लहरें,पवन के थपेड़े
कांपती धरती,आंधी तूफान
अनगिनत लुटेरे और बेईमान
इस समाधि से टकराए हैं
महज चूर होने के लिए
मौन संगमरमर,तुम्हारी याद में
एक पैर पर खड़े हैं
सुनहरी शाम
शोर मत करो बटोही
शांत,सुप्त-प्रेम लीन शाह
कहीं जग न जाये।
मंगलवार, 19 अगस्त 2008
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1 टिप्पणी:
aah taaj!
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