राहों पर बोये गए, जितने भी कांटे
जितने भी रोड़े
बिखेरे गये हैं,
जितने भी शीशे यहां
तोड़ें गए हैं।
सबको हम फेंक राह
सुथरी बना दें
पीछे न देखें मुड़
दिन हो या रातें
मोड़े हम सागर भी
रास्ते में जो पड़े
तोड़े हम पर्वत भी
व्यवधान जो करे।
रेगिस्तान पहुंच हम
रेतों को फेंक दे
वृक्षों की पक्ति सजा
बारिस हम रोक लें
सबके दुख एक साथ मिलकर हम बाटें
राहों पर बोये गए, जितने भी कांटे
आओ हम एक साथ, मिलकर काटें।
रविवार, 17 अगस्त 2008
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