ठुकराए गए
बैरंग पत्र की मानिंद
आरएलओ सी दुनिया में
एक कोने पड़ा हूं
ऐसे फूल भी नहीं हैं
जिसमें कोई गंध
कोई रंग भी नहीं है इस होली में
कोई दिया भी नहीं लहरा रहा है
इस दीवाली में कोई कोलाहल भी नहीं है
इस दशहरे में कोई उल्लास भी नहीं
इस चांदनी में
बस अमावस है
अमावस की विरासत जो जाते-जाते थमाया था
उसे संभाले भटक रहा हूं
तुमको मुबारक हो तुम्हारी चांदनी.
मंगलवार, 19 अगस्त 2008
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1 टिप्पणी:
अरे भाई कविता तो बहुत सुन्दर हे लेकिन बहुत उदासी भरी हे... भईया हर रात के बाद दिन जरुर निकलता हे,
बहुत सुन्दर भाव
धन्यवाद
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