मेरे मीत,
रात का गहन अंधकार,
रच बस गया है मेरे भीतर,
चांद, तारे, सूर्य,रोशनी, प्रकाश ,
अपने लिए,
महज arthheen शब्द बन कर रह गये हैं.
जाने कितने युग से,
ठहरी है मेरी जिंदगी,
एक ऐसे अज्ञात, गैर जरूरी कोने में,
फिट हो गया हूं
जहां से कोई गुजरता भी नहीं,
ऐसा विराट अंध सागर है,इर्द-गिर्द
कुछ देख भी नहीं पाता
हां chattano से takraati लहरों की धुन
और बहुत कुछ सिर्फ सुन सकता हूं.
और अपने कानों से बहुत कुछ ,
aank सकता हूं,
aashankaye जता सकता हूँ
सपने बुन सकता हूं
पर सब कुछ जानने के बाद भी
खामोशी मेरी विवशता है,
मैं कैद क्यो हों
मेरा गुनाह क्या है?
मंगलवार, 19 अगस्त 2008
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें