गुरुवार, 14 अगस्त 2008

पिघलता पहाड़

रातो -रात
तेरी ऊष्मा से
जाने कैसे पिघल गयी
मेरी जिंदगी की बरफ

मुझे पहाड़ ही रहने दिया होता
किसने कहा था?
ऊष्मा देकर
सोख लो
मेरे भीतर का पहाड़
और खुद में समाहित कर लो
मेरे भीतर की बरफ

मेरी बरफ
जमी ही रहती
तो धीरे-धीरे
पिघल कर
कुछ फायदा भी करती
पर अचानक् बढियायी नदी की मानिंद
सारी बर्फ पिघलाना
किसका भला हुआ?

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